साँझ वह पहलू है,जिससे बच कर अक्सर भागते रहा हु मैं, इन कविताओ में जरूर कुछ आपको अपना-पन लगे, या आपके जीवन से जुड़े हो, हर एक कविता खुद ही खुद में एक कहानी लिए चलती है। उम्मीद है आप इस पुस्तक में कुछ नया जरूर खोजे। “आज हम उस मक़ाम पे है जहा हज़ारो लोग साथ रहे है। हज़ारो सपने भी साथ जिए है। कुछ बने है और कुछ बहुत बिखरे भी"।।
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Saanjh ( साँझ )
साँझ वह पहलू है,जिससे बच कर अक्सर भागते रहा हु मैं, इन कविताओ में जरूर कुछ आपको अपना-पन लगे, या आपके जीवन से जुड़े हो, हर एक कविता खुद ही खुद में एक कहानी लिए चलती है। उम्मीद है आप इस पुस्तक में कुछ नया जरूर खोजे। “आज हम उस मक़ाम पे है जहा हज़ारो लोग साथ रहे है। हज़ारो सपने भी साथ जिए है। कुछ बने है और कुछ बहुत बिखरे भी”।।
Published Year | 2017 |
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Page Count | 75 |
ISBN | 819350335X |
Language | Hindi |
Author |
Mukesh Pandey |
Publisher |
Kalamos Literary Services |